Wednesday, December 9, 2009

क्षमा

एक ने कहा भूल जाओ,
दूजे ने कहा भूल जाओ,
औरो ने कहा भूल जाओ,
ज़ख्म को तुम भूल जाओ,
ज़ख्म देनेवाले को भूल जाओ.

सभी गलत तो हो नहीं सकते!!
किस-किस की बातों को टालू?
जीवन भर सत्य के साथ चला हुं,
सत्य-वचन से कब तक भागु?

समय चलते ज़ख्म तो भर जाएंगे,
हृदय-घाव भरना बसमें नहीं.
हृदय पर काबू पा भी लू,
मन पर काबू बस में नहीं.

चलो जाने दो,
नया सवेरा, नई सुबह.
हृदय और मन को साफ किया,
ज़ख्म देनेवाले को माफ किया.

बार-बार माफी समझमें नहीं,
जवानी जीवन-भर बस मे नहीं,
अब थक चूका शरीर है,
नए घाव सहना बस में नहीं.

सोचता हुं; क्या करु?
ऐसा कुच काम करु!!
खाने न पड़े ज़ख्म नये.
सोचता हुं; क्या करु?

सोचता हुं; साधु बन जाउ
स्थित्प्रग्नता अंगिकार करु.
सोचता हुं; भग्वे मे क्या रखा है?
गृहस्थ-जीवन मे हि साधुत्व स्वीकार करु.
जीवन कि नये से शरुआत करु.

- दिलीप पंचमिया

3 comments:

Unknown said...

Heyy Kaka...Nice Thoughts Must Say....Keep Up the Great Work....Tanvi

Unknown said...

Hey Dilipbhai great.... aakher aapaka chupa huva kavi bahar aa hi gaya.keep it up..

DilipRPanchamia said...

Thanks for your comments.